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Amirkhan
BOL-aamir-khan interview
भोपाल. आमिर खान। साल में कोई एक ही काम
हाथ में लेते हैं। किन्तु उसी में डूब जाते हैं। दैनिक
भास्कर के आज के अंक के गेस्ट एडिटर बनकर
भोपाल आए। समूह के नेशनल एडिटर कल्पेश
याग्निक के साथ उन्होंने खुलकर चुनाव,
राजनीति, सरकार पर बात की। अपनी तरह
का पहला इंटरव्यू।
सवा चार हजार पाठकों ने पूछा एक ही सवाल
आप राजनीति में क्यों नहीं जाते? नहीं भी जाएं
तो खुद को किस पार्टी के करीब पाते हैं?
आमिर का जवाब- मैं जिस क्षेत्र में हूं-
एंटरटेनमेंट। उसी में ठीक हूं। उसी के माध्यम से
योगदान देना चाहता हूं। इस समय कोई
भी ऐसी पार्टी नहीं है जिसे मैं खुद के करीब
पाता हूं।
(भास्कर ने पाठकों से सवाल मंगवाए थे, उनमें
सर्वाधिक लोगों ने यही पूछा था।)
भास्कर - जिस तरह के लोग सामने आ रहे हैं,
बहुत-सी हताशा है लोगों के मन में सरकार के
प्रति। आपको क्या लगता है कि वक्त आ
गया है कि कोई एक दल ही देश में शासन
चलाए? या अचानक से उभरी क्षेत्रीय
पार्टियां भी मजबूत हों? गठबंधन सरकारें रहें?
आमिर - राजनीति का स्ट्रक्चर खराब नहीं है।
हम ही हैं जो देश को चला रहे हैं। तो स्ट्रक्चर
बदलने से कुछ नहीं होगा।
अभी मौजूदा राजनीतिक दलों को देखें
जो राष्ट्रीय या क्षेत्रीय हैं, तो उनमें मैं
गठबंधन को ही तरजीह दूंगा। या तो मुझे एक
पॉलिटिकल पार्टी दिखे, जिसे देखकर यह लगे
कि वाह! क्या पार्टी है। यह आ जाए बहुमत में
तो अच्छा काम करेगी। लेकिन ऐसा नहीं है।
इसलिए अभी एक पार्टी की सत्ता ठीक नहीं।
मैं तो फ्रेक्चर्ड वर्डिक्ट ही चाहूंगा।
चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा किसे मानते हैं?
भ्रष्टाचार को, महंगाई
को या सांप्रदायिकता को?
यह बड़ा मुश्किल सवाल है। इसका जवाब
हमेशा शॉर्ट टर्म आता है। मैं लॉन्ग टर्म जवाब
देना चाहता हूं। जिस दिन ये एहसास आ
जाएगा कि यहां मेरा राज है, उसी दिन ये
सारी समस्याएं हल हो जाएंगी।
मतलब स्वराज?
जी, स्वराज। जो लोकमान्य तिलक ने कहा था।
जो गांधीजी ने कहा था, बदलाव उससे भी आ
सकता है। सेवा, संघर्ष या निर्माण। हर
हिंदुस्तानी जब इन तीन चीजों में से किसी एक
का हिस्सा होगा, तभी बदलाव आएगा।
स्वराज की बात से याद आया कि आम
आदमी पार्टी इसकी बात कर रही है। इस
पार्टी पर आप क्या कहेंगे?
वैसे तो आम आदमी पार्टी पर कमेंट
करना जल्दबाजी होगी। क्योंकि अभी वक्त
ही कितना हुआ है। लेकिन इतना जरूर
कहना चाहूंगा कि यही एक पार्टी है
जो बुनियादी तौर पर बिलकुल अलग चीज कह
रही है। बाकी सब पार्टियां घुमा-फिराकर एक
ही बात कहती हैं कि आप हमें वोट दो, हम
आपको अच्छा राज देंगे। जबकि आम
आदमी पार्टी ऐसा नहीं कहती। वो कहती है-
हमें वोट दो, हम आपका राज लाएंगे। ये एक
बुनियादी फर्क है।
फिर भी आप इस पार्टी को समर्थन नहीं देते।
अपने निकट नहीं पाते?
देखिए, अभी केवल वो ऐसा कह रहे हैं। करके
दिखाएंगे तो मानेंगे।
नरेंद्र मोदी के बारे में क्या कहेंगे?
वे एक्स्ट्रीमली पॉपुलर नेता हैं। इसमें कोई
दोमत नहीं है।
आपके देखते-देखते एक सबसे बुरी बात
क्या हुई है? किसका स्तर सबसे ज्यादा गिरा?
नैतिक मूल्यों का पतन सबसे ज्यादा हुआ। हम
बाहुबली को इज्जत देते हैं।
अपनी बेटियों की शादियों में उन्हें बुलाते हैं।
उनके पैर छूते हैं। तो हमारी वैल्यूज कहां गईं?
देखना होगा- हमारे हीरो कौन हैं? जो गलत काम
कर रहा है, क्या वह हमारा हीरो है? जो सच्चाई
से काम कर रहा है, उस पर हम हंसते हैं।
यहीं सबसे बड़ी कमी आई है। जो आदमी नेकी से
काम कर रहा है। उसे हम ताने मारते हैं। उसे
बेवकूफ समझते हैं।
आगे की स्लाइड में पढ़ें राजनीति में जीनियस
नहीं, जिम्मेदार लोग चाहिए.....

'सबसे अच्छी बात-अमीर हो या गरीब; लोग
अब सड़कों पर उतर रहे हैं, मुद्दों की बात कर
रहे हैं’
राजनीति में जीनियस नहीं, जिम्मेदार लोग
चाहिए
जो आदमी लोगों को बिगाड़ रहा है, उनकी सोच
में जहर डाल रहा है, उसकी हम तारीफ करते हैं
कि वाह क्या आदमी है। इसे मैं अलग उदाहरण
के रूप में भी देखता हूं। अगर मुझे कैंडिडेट
को चुनना है तो अगर वह गुंडा है तो उसके पास
जाऊंगा। वह तुरंत मेरा काम कर देगा।
दरोगा को दो थप्पड़ लगाने हैं तो वह भी कर
देगा। दूसरा नेक इंसान है, अच्छा इंसान है। वह
काम नहीं करेगा। चार साल की रिसर्च में मैंने
यही महसूस किया है। जब हम यह महसूस करेंगे
कि कोई आदमी सही है, संवेदनशील है, सच्चा है
तो इसे ही चुनेंगे। और जब
यही भावना आएगी तो हममें तब्दीली आएगी।
इस 'सत्यमेव जयते’ के सफर में मुझे यह
भी सीखने को मिला कि जहां-जहां समुदाय
या गांव एक होते जा रहे हैं वहां वहां हमने
खुशहाली देखी। आर्थिक तरक्की देखी। लोग
सोच रहे हैं कि मैं वहीं करूंगा जो मेरे फायदे
का नहीं, दूसरों के फायदे का है।
और सबसे अच्छी बात?
मेरे विचार से यह है कि पिछले कई सालों में ऐेसे
कई मौके आएं हैं जब आम आदमी, चाहे अमीर
हो गरीब हो, वह सड़कों पर आया है। पहले लोग
घरों में बैठे रहते थे। अब सड़कों पर आ रहे हैं
विरोध प्रदर्शन के लिए। यह असामान्य है
जो हम देख रहे हैं। लोग मुद्दों में शामिल हो रहे
हैं।
आपको उम्मीद किसमें ज्यादा लगती है?
न्यायपालिका में या विधायिका में?
सबसे बड़ी उम्मीद जनता से है। चाहे फिर वह
किसी भी क्षेत्र में काम कर रही हो। ये सारे
संस्थान जनता के लिए ही हैं।
न्यायपालिका भी टेबल-कुर्सी से नहीं बनी है।
युवाओं पर सबसे ज्यादा क्या प्रभाव
डालता है? हम जर्नलिज्म में देखते हैं
कि युवाओं में तीन पैशन हैं। पहला सिनेमा है।
दूसरा क्रिकेट है। तीसरा राजनीति है।
इस माहौल में तो राजनीति ही असर
डालती नजर आ रही है।
क्या चीजें हैं जो किसी दल में अलग नजर
आनी चाहिए?
दलों में सही लोग होने चाहिए। किसी भी चीज
का चरम अच्छा नहीं होता। ऐस लोग चाहिए
जो संवेदनशील हों। हमें जीनियस नहीं चाहिए।
हमें जिम्मेदार लोग चाहिए। हमें कोई रॉकेट
नहीं बनाना है। ऐसे लोग चाहिए जो अच्छे
निर्णय ले सकें। सभी को साथ लेकर चलें।
लोगों की और देश की फिक्र करें। सत्ता के भूखे
न हों।
इसी तरह की राहुल गांधी भी बात करते हैं
कि आखिरी आदमी तक पहुंचकर, उन्हीं से
सबकुछ समझकर फैसले करने चाहिए।
क्या आप मिले हैं कभी राहुल गांधी से?
मेरा एक बार ही इत्तेफाक से उनसे मिलना हुआ
था। मैं उन्हें ज्यादा नहीं जानता हूं।
लेकिन सवाल यह आता है कि लोगों से
इतना ज्यादा कैसे पूछा जाए कि उनके हिसाब
से फैसले हों?
ग्राम सभा अपने फैसले ले। जमीनी स्तर पर
क्या हो रहा है, वह ग्राम सभा अच्छी तरह से
जानती है। जहां तक नीतियों और खासकर
आर्थिक नीतियों की बात है तो उसमें आम
आदमी का योगदान नहीं हो सकता, क्योंकि मैंने
जो आदमी चुना है वही राष्ट्रीय स्तर के
निर्णय लेगा। इसलिए तो हमने उसे चुना है।
फिल्मों की प्री-हाइप बहुत ज्यादा बन गई है।
सोशल मीडिया। यूट्यूब। पब्लिसिटी है। हाइप
बहुत ज्यादा होता है। उसके बाद
अंडरडिलीवरी होती है।
प्री-रिलीज हाइप और
पब्लिसिटी ज्यादा हो जाती है। उसके बारे में
पहले मैं कहना चाहूंगा कि हर फिल्म अलग
होती है। जरूरत से ज्यादा हाइप मैं
भी नहीं चाहता। मैं आपको धूम-3 का उदाहरण
देना चाहता हूं। हम किसी टीवी चैनल पर गए
ही नहीं। टीवी पर कई लोकप्रिय
रियलिटी प्रोग्राम होते हैं। स्टार उसमें जाकर
फिल्म प्रमोट करते हैं। हम एक भी चैनल में
नहीं गए। हमने हमारे ट्रेलर चलाए। जिसके लिए
हम पैसे देते हैं। लोग देखकर खुद फैसला करते हैं
कि उन्हें फिल्म देखने जाना है या नहीं।
फिल्म रिव्यू में जो रेटिंग दी जाती है, उसके
आधार पर लोग देखने जाते हैं, जबकि फिल्म
खराब निकलती है। क्या रेटिंग खत्म
होनी चाहिए?
ऑडियंस बहुत समझदार है। अब हम आते हैं
रेटिंग्स और रिव्यू पर। फिल्मों को आप रेटिंग
कैसे कर सकते हैं। यह एक सजेक्टिव चीज है।
आपने फिल्म देखी। आपको बहुत पसंद आई।
मुझे पसंद नहीं आई। अक्सर रिव्युअर्स फिल्म
की कहानी भी रिव्यू में बता देते हैं।
 वो नहीं होना चाहिए। रेटिंग्स दी जाएं तो मुझे
इसमें कुछ गलत नहीं लगता।
आगे की स्लाइड में पढ़ें लोकतंत्र के
मौजूदा ढांचे पर आमिर ने क्या दिया जवाब....

लोकतंत्र के मौजूदा ढांचे को कितना ठीक मानते
हैं?
स्ट्रक्चर तो बना है। इसकी कोशिश यह
होनी चाहिए कि इसमें प्रतिनिधित्व हर जगह,
हर वर्ग का हो। पंचायती राज हर जगह है,
लेकिन लागू नहीं हो रहा है। किस ईमानदारी से
इस एक्ट को लागू किया जा रहा है, यह अहम है।
केरल में अच्छे से इस पर अमल हो रहा है।
वही एक राज्य है जो ईमानदारी से इसे लागू कर
रहा है। वहां बजट का एक तिहाई हिस्सा सीधे
पंचायती राज के लिए दिया जा रहा है। सोच
यही हो कि अब आप फैसला करें। पंचायत नहीं,
ग्राम सभा फैसला करे कि पंचायत
को जो पैसा मिला है, वह किस काम में इस्तेमाल
होगा। स्थानीय फैसले स्थानीय स्तर पर
ही लिए जाएं। स्कूल नहीं है या सड़क नहीं है
तो इस बारे में फैसला स्थानीय स्तर पर
ही होना चाहिए। बाकी राज्यों में पंचायती राज
कागजों पर तो है लेकिन जो मुझे समझ
आया कि ज्यादातर ग्राम सभाओं की बैठकें
ही नहीं होतीं। रजिस्टर अलग-अलग तरीके से
भर लिया जाता है। बाकी मेंबर्स
को पता ही नहीं चल पाता कि मीटिंग
थी भी या नहीं? लेकिन स्ट्रक्चर बुरा नहीं है।
इसमें मेरी समझ यह है कि हम ऐसे समाज में रह
रहे हैं जहां हम मानते हैं कि सत्ता अच्छी है, उसे
बांटा जाना चाहिए। लेकिन सिर्फ मुझ तक
बांटा जाना चाहिए। सत्ता मुझसे नीचे
नहीं जानी चाहिए। सिस्टम तो अच्छा है, लेकिन
लोग उसे बीच-बीच में रोक रहे हैं। जैसे केरल में
है वैसा महाराष्ट्र में क्यों नहीं है? किसी दिन
महाराष्ट्र के लोग जागेंगे कि हम तय करेंगे
कि यहां क्या होना है।
आगे की स्लाइड में पढ़ें
'मीडिया छापता ही क्यों है कि किस फिल्म ने
200 या 500 करोड़ रुपए कमाए’…

'मीडिया छापता ही क्यों है कि किस फिल्म ने
200 या 500 करोड़ रुपए कमाए’
आजकल एक ट्रेंड चल पड़ा है। हम लोग भी बात
करते हैं और घर-घर में इसके बारे में बात
हो रही है। 100 करोड़... 150 करोड़... और 250
करोड़... क्वालिटी की बात नहीं हो रही है।
आपके कई प्रशंसकों का भी कहना है
कि आमिर मतलब एक्टिंग। उनकी फिल्म में
कोई मैसेज भी होगा। लेकिन धूम-3 में
तो उन्होंने भी एक्टिंग की बात नहीं की।
तो क्या यह एक अच्छा ट्रेंड है?
यह एक बहुत बुरा ट्रेंड है। क्रिएटिव
लोगों को लक्ष्मी के बारे में
इतना नहीं सोचना चाहिए। सरस्वती के बारे में
सोचना चाहिए। मैं आपको यकीन दिलाता हूं
कि मैंने अपने 25 साल के फिल्म कॅरियर में
आज तक कभी भी पैसे की वजह से फिल्म
साइन नहीं की। ये बात मैं सिर्फ अल्फाज में
नहीं कह रहा हूं। आप लोग मेरे एक्शंस में देख
लीजिए। यदि किसी को 'धूम-3’ की बात पसंद
नहीं आई तो यह बात मैं मानता हूं। लेकिन यह
फिल्म मैंने इसलिए नहीं की कि यह 500 करोड़
रुपए कमाएगी। धूम-3 की कहानी मुझे
बड़ी पसंद है। एक्टर होने के नाते वह रोल मुझे
चैलेंजिंग लगा। आम तौर पर इस किस्म
की लार्जर देन लाइफ मेन स्ट्रीम फिल्में कम
करता हूं। बहुत कम करता हूं। मेरे ऑडियंस के
लिए भी यह वैरायटी रहती है कि आम तौर पर
आमिर ऐसी फिल्में नहीं करता। लेकिन जब मैं
कहानी सुनता हूं तो उस वक्त मेरे दिल में से
आवाज आती है कि मुझे यह फिल्म करनी है।
आपको मैं उदाहरण देता हूं- तारें जमीं पर.. मैंने
कहानी सुनी, मुझे फिल्म करनी थी। अगर मैं
उस किस्म का सेलिब्रिटी होता या क्रिएटिव
इंसान होता, जो पोटेंशियल ऑफ बिजनेस के
बारे में सोचता तो तारें जमीं पर मैं
कभी नहीं करता। रंग दे बसंती मैं
कभी नहीं करता। लगान नहीं करता। ये
सारी फिल्में मैनस्ट्रीम की फिल्में हैं ही नहीं। ये
बात और है कि यह फिल्में बहुत कामयाब हुई
और फिर मैन स्ट्रीम का हिस्सा बन गई। और
मैंने पिछले दस सालों की आठ फिल्में
गिना दी आपको। मैंने उन्हें इसलिए
चुना क्योंकि वो मेरे मन को छू चुकी थी। मेरे मन
को छूआ तो मुझे लगा कि मुझे करना चाहिए। मैं
मीडिया को भी रिक्वेस्ट करूंगा।
मीडिया छापता ही क्यों है किसी फिल्म ने 200
या 500 करोड़ कमाए। आप इसे नजरअंदाज
करें। आप ये रिपोर्ट कीजिए कि फिल्म
लोगों को कितनी पसंद आई। फिल्म
कितनी अच्छी थी। अब मैं आपसे पूछता हूं
कि आपकी जिंदगी की फेवरेट फिल्म कौन-
सी है? अब सोचिए कि उस फिल्म
का धंधा कितना रहा था? क्या आपको पता है?
हमको किसी फिल्म से दिलचस्पी इसलिए
होती है कि वह हमारा दिल छू लेती है। वो हमारे
अंदर कुछ चीजें जागृत करती है और
वो हमको पसंद आती है। किसी को भी कंसर्न
नहीं है कि उसने कितना पैसा कमाया है। तो न
लोगों को इसमें इंटरेस्ट लेना चाहिए, न
मीडिया को लेना चाहिए और न क्रिएटिव
इंसान को लेना चाहिए।