ज्ञानगंगा
तु लसीदासजी ने अपने
रामचरित मानस में संदर्भ
के अनुसार चाणक्य
नीति का भी जिक्र किया है.
जब स्वार्थवश रावण
मारीचि के पास जाकर
उससे कपट मृग बनने
की प्रार्थना करता है; तब मारीचि उसे राम से
वैर मोल लेने को मना करता है; किंतु इस पर
रावण की भृकुटी तनती देख कर मारीचि मन में
विचार करता है - उसके मुंह में तुलसी ने नीति के
शब्द रख दिए हैं कि संसार में
नौ व्यक्तियों का विरोध नहीं करना चाहिए.
उनमें सबसे पहले स्थान पर आता है- 'सस्त्री'
अर्थात वह व्यक्ति जिसके पास हथियार है.
विरोध करने पर क्रोधित होकर वह हमारा वध
कर सकता है. दूसरे स्थान पर है - 'मर्मी'
जो हमारी कमजोरियों से वाकिफ होता है.
विरोध करने पर वह लोगों पर हमारा भेद खोल
देगा. उसके बाद 'प्रभु' अर्थात मालिक
का नंबर आता है जिसके अधीन हम काम करते
हैं. यदि हम उसका विरोध करेंगे तो वह हमें काम
से ही निकाल देगा. फिर आता है 'सठ' अर्थात
दुष्ट व्यक्ति. दुष्ट का विरोध
करना बड.ा ही घातक होता है. पांचवां स्थान
मिला है 'धनी' अर्थात धनवान को. धनवान
का विरोध करने से हमें समय पर आर्थिक मदद
नहीं मिलेगी. हमें अपने 'वैद्य' अर्थात डॉक्टर
का भी विरोध नहीं करना चाहिए अन्यथा वह
गलत दवा देकर हमें नुकसान पहुंचा सकता है.
वैसे ही 'वंदि' अर्थात गुणगान करने वाले 'भाट'
को भी खुश रखना चाहिए. आठवां स्थान 'कवि'
को मिला है. कवि का हमें विरोध
नहीं करना चाहिए और नवें स्थान पर आता है
'रसोइया'. यदि हम रसोइए को नाराज कर देंगे
तो वह हमें स्वादरहित भोजन कराएगा.
इसीलिए इन नौ व्यक्तियों से विरोध करने में
कल्याण नहीं होता है. ल्लल्ल
■ गंगा प्रसाद मिश्र

जीवन ताश के खेल के समान है। आप
को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है। आप कैसे
खेलते हैं वह आपकी इच्छा है।
जवाहर लाल नेहरू
कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले
श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ
उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं।
बालगंगाधर तिलक

अंतर्दृष्टि
22042013
वाणी और वेश से किसी मन के मैले पुरुष
या स्त्री को जानना संभव नहीं है। सूपनखा,
मारीचि, रावण और पूतना ने सुंदर वेश धरे, पर
उनकी नीयत खराब थी।
-तुलसीदास
भोग में रोग का, उच्च कुल में पतन का, धन में
राजा का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का,
रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर
है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है।
-भगवान महावीर
[ जारी है ]
इन सातों को नींद से नहीं जगाना चाहिए : सांप,
राजा, बाघ, छोटा बच्चा, किसी अन्य
का कुत्ता, अज्ञानी और डंक मारने
वाला कीड़ा।
-आचार्य चाणक्य
केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं, जो सदा भाग्य
को कोसते हैं और जिनके पास
शिकायतों का अंबार होता है।
-जवाहर लाल नेहर
मृत अतीत को दफना दो, अनंत भविष्य तुम्हारे
सामने है और स्मरण रखो -प्रत्येक शब्द,
विचार और कर्म तुम्हारे भाग्य का निर्माण
करता है।
-स्वामी विवेकानंद
दुर्बल व्यक्ति अपमान करे, तो उसे क्षमा कर
देना चाहिए क्योंकि वीरों की शोभा क्षमा करने
में है। लेकिन कोई बलवान व्यक्ति अपमान करे
तो उसे दंडित करने में ही वीरता है।
-गुरु गोविंद सिंह
धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है, पर पाप
करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं।
-महाभारत
जो पुस्तकेें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर
करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं।
-जवाहरलाल नेहर
चिंता से चित्त को संताप और
आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए
चिंता को छोड़ देना चाहिए।
-ऋग्वेद
यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ
सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें
और लोगों से सच्चा व्यवहार करें।
-महर्षि अरविंद
एक बुरे मित्र पर तो कभी विश्वास न करंे। एक
अच्छे मित्र पर भी विश्वास न करंे। यदि ऐसे
लोग आपसे नाराज हुए तो आपके सभी राज
खोल देंगे।
-आचार्य चाणक्य
कामनाएं समुद्र की भांति अतृप्त हैं।
पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल
और बढ़ता है।
-स्वामी विवेकानंद
यदि मार्ग कांटों भरा हो, और आप नंगे पांव
हो तो रास्ता बदल लेना चाहिए।
-चाणक्य
हर इंसान का भाग्य एक बार अवश्य उदय
होता है। यह बात अलग है कि वह
उसका कितना लाभ उठाता है।
भृगु
परदेश में विद्या मित्र है। विपत्ति में धैर्य
मित्र है। घर में पत्नी मित्र है। रोगी का मित्र
वैद्य है।
चाणक्य
जरूरत से
ज्यादा ईमानदारी ठीक नहीं:
चाणक्य नीति

आज से करीब 2300 साल पहले पहले पैदा हुए
चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र
के पहले विचारक माने जाते हैं। पाटलिपुत्र
(पटना) के शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़
फेंकने और अपने शिष्य चंदगुप्त मौर्य
को बतौर राजा स्थापित करने में चाणक्य
का अहम योगदान रहा। ज्ञान के केंद्र
तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य रहे
चाणक्य राजनीति के चतुर खिलाड़ी थे और
इसी कारण उनकी नीति कोरे आदर्शवाद पर
नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान पर टिकी है।
आगे दिए जा रहीं उनकी कुछ बातें भी चाणक्य
नीति की इसी विशेषता के दर्शन होते हैं :
- किसी भी व्यक्ति को जरूरत से
ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे तने
वाले पेड़ ही सबसे काटे जाते हैं और बहुत
ज्यादा ईमानदार लोगों को ही सबसे
ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं।
- अगर कोई सांप जहरीला नहीं है, तब भी उसे
फुफकारना नहीं छोड़ना चाहिए। उसी तरह से
कमजोर व्यक्ति को भी हर वक्त
अपनी कमजोरी का प्रदर्शन
नहीं करना चाहिए।

सबसे बड़ा गुरुमंत्र : कभी भी अपने
रहस्यों को किसी के साथ साझा मत करो, यह
प्रवृत्ति तुम्हें बर्बाद कर देगी।
- हर मित्रता के पीछे कुछ स्वार्थ जरूर
छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई
दोस्ती नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न
छिपे हों, यह कटु सत्य है, लेकिन यही सत्य है।
- अपने बच्चे को पहले पांच साल दुलार के साथ
पालना चाहिए। अगले पांच साल उसे डांट-
फटकार के साथ निगरानी में रखना चाहिए।
लेकिन जब बच्चा सोलह साल का हो जाए,
तो उसके साथ दोस्त की तरह व्यवहार
करना चाहिए। बड़े बच्चे आपके सबसे अच्छे
दोस्त होते हैं।
- दिल में प्यार रखने वाले लोगों को दुख
ही झेलने पड़ते हैं। दिल में प्यार पनपने पर बहुत
सुख महसूस होता है, मगर इस सुख के साथ एक
डर भी अंदर ही अंदर पनपने लगता है, खोने
का डर, अधिकार कम होने का डर आदि-आदि।
मगर दिल में प्यार पनपे नहीं,
ऐसा तो हो नहीं सकता। तो प्यार पनपे मगर
कुछ समझदारी के साथ। संक्षेप में कहें
तो प्रीति में चालाकी रखने वाले ही अंतत:
सुखी रहते हैं।
- ऐसा पैसा जो बहुत तकलीफ के बाद मिले,
अपना धर्म-ईमान छोड़ने पर मिले
या दुश्मनों की चापलूसी से,
उनकी सत्ता स्वीकारने से मिले, उसे स्वीकार
नहीं करना चाहिए।
- नीच प्रवृति के लोग दूसरों के दिलों को चोट
पहुंचाने वाली, उनके विश्वासों को छलनी करने
वाली बातें करते हैं, दूसरों की बुराई कर खुश
हो जाते हैं। मगर ऐसे लोग अपनी बड़ी-
बड़ी और झूठी बातों के बुने जाल में खुद भी फंस
जाते हैं। जिस तरह से रेत के टीले
को अपनी बांबी समझकर सांप घुस जाता है
और दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है,
उसी तरह से ऐसे लोग भी अपनी बुराइयों के
बोझ तले मर जाते हैं।
- जो बीत गया, सो बीत गया। अपने हाथ से
कोई गलत काम हो गया हो तो उसकी फिक्र
छोड़ते हुए वर्तमान को सलीके से जीकर
भविष्य को संवारना चाहिए।
- असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं।
बहादुर और बुद्धिमान
व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं।
- संकट काल के लिए धन बचाएं। परिवार पर
संकट आए तो धन कुर्बान कर दें। लेकिन
अपनी आत्मा की हिफाजत हमें अपने परिवार
और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।
- भाई-बंधुओं की परख संकट के समय और
अपनी स्त्री की परख धन के नष्ट हो जाने पर
ही होती है।
- कष्टों से भी बड़ा कष्ट दूसरों के घर पर
रहना है।

किसी आदमी की बुराई-भलाई तब तक
पता नहीं चलती जब तक वह बातचीत न करे।
हरिभाऊ उपाध्याय
अंतर्दृष्टिबिना विचारे कोई
काम नहीं करना चाहिए।

अंतर्दृष्टि
बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। ठीक
तरह से विचार न कर कोई काम करने से
आपत्ति हो सकती है। जो कुछ किया जाए,
उसके आगे-पीछे की सब बातोें पर विचार कर
लेना चाहिए।
जवाहरलाल नेहरू
*
मनुष्य जितना ही चाहता है,
उतनी ही उसकी पाने की शक्ति बढ़ती है।
अभाव पर विजय पाना ही जीवन
की सफलता है। उसे स्वीकार करके
उसकी गुलामी करना कायरपन है।
शरत् चन्द्र

अंतर्दृष्टि
हमारी जीभ कतरनी के समान सदा स्वछंद
चला करती है। उसे यदि हमने दबा कर काबू कर
लिया तो क्रोध आदि बड़े बड़े अजेय शत्रुओें
को बिना प्रयास के ही जीतकर अपने वश मेें
कर डाला।
बालकृष्ण भट्ट
*
इंसान को सुनना सीखना चाहिए। इससे उसे यह
लाभ होगा कि वह उन लोगोें से भी सीख
सकेगा जो बातचीत करना तक नहीं जानते।
भर्तृहरि
[ जारी है ]
*
अंतर्दृष्टि
हमारी जीभ कतरनी के समान सदा स्वछंद
चला करती है। उसे यदि हमने दबा कर काबू कर
लिया तो क्रोध आदि बड़े बड़े अजेय शत्रुओें
को बिना प्रयास के ही जीतकर अपने वश मेें
कर डाला।
बालकृष्ण भट्ट
*
इंसान को सुनना सीखना चाहिए। इससे उसे यह
लाभ होगा कि वह उन लोगोें से भी सीख
सकेगा जो बातचीत करना तक नहीं जानते।
भर्तृहरि
[ जारी है ]
*
अंतर्दृष्टि
सुधारक चाहे कितन भी श्रेष्ठ क्योें न हो, जब
तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात
नहीं सुनेगी।
विनोबा भावे
*
जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर
क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी,
प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन मेें
चला जाना चाहिए।
महात्मा गांधी

अंतर्दृष्टि
बुराई आदमी को पहले अज्ञानी व्यक्ति के
समान मिलती है और हाथ बांधकर नौकर
की तरह उसके सामने खड़ी हो जाती है। फिर
मित्र बन जाती है और करीब आ जाती है। फिर
मालिक बनती है और आदमी के सिर पर सवार
हो जाती है और उसे सदा के लिए अपना दास
बना लेती है।
सुदर्शन
*
मन बड़ा चंचल है। यदि काम न हो तो इधर उधर
भटकने लगता है और अपने मालिक को विनाश
के मार्ग में फंसाकर मार डालता है।
विनोबा भ
सुधार एक दिन मेें नहीं हो जाता, उसके लिए
सुधारक को उपहास और विरोध सहने पड़ते हैं।
प्रेमचंद
*
यदि लोग अपना अपना सुधार भी कर लेें तो धीरे
धीरे पूरा देश सुधर सकता है।
अमृतलाल नागर
जो नेक काम करता है और नाम
की इच्छा नहीं रखता उसके चित्त
की शुद्धि होती है।
विनोबा भावे
*
जब गुस्से मेें हो तो दस बार सोच कर बोलो।
जब बहुत गुस्से मेें हो तो बोलने से पहले हजार
बार सोचो।
एक कहावत

अंतर्दृष्टि
जब किसी इंसान के बुरे दिन चल रहे होें तो उसे
बहुत उपदेश देने के बजाय
उसकी थोड़ी सी मदद कर देना अच्छा है।
सुदर्शन
*
दुर्जनोें के साथ मैत्री और प्रेम कुछ
भी नहीं करना चाहिए। कोयला यदि जलता हुआ
है तो स्पर्श करने पर जला देता है। और अगर
ठंडा है तो हाथ काला कर देता है।
हितोपदेश

दुख मनुष्य के विकास का साधन है। सच्चे
मनुष्य का जीवन दुख मेें खिल उठता है। सोने
का रंग तपने पर ही चमकता है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार

आज की रिऐलिटी यही है कि पहले
करियर और कारोबार और उसके बाद ही प्यार
और मौज-बहार। इन सबके बीच
आपका कार्यरत रहना उस सचाई
को भी बयान करता है कि भूखा व्यक्ति रोमांस
नहीं कर सकता।

best of luck nahi best of karma and your practices
80 % सफलता अपनी मेहनत से और 20 % सफलता हमारे luck याने बङौ का आशिष , दुवा , कमॅफल ....आदि ।
http://navbharattimes.indiatimes.com
हम सुख के लिए रोते है।
घर में मृत्यु हुई है , मुझे बड़ा दुख है ?
अपनों के जाने का दु:ख तो होता ही है
, लेकिन यह समझना चाहिए
कि संसार में हर शख्स
अपनी यात्रा पर आता है।
यात्रा पूरी होने पर वह
चला जाता है। इस जीवन में यहां कई
लोग मिलते हैं , उनसे मेलजोल होता है
, संबंध जुड़ता है। लेकिन यह सब बस
यहीं तक सीमित है। जैसे आप ट्रेन
से सफर कर रहे हों ,
यात्रा लंबी हो तो आस-पास बैठे
लोगों से भी आप बातचीत करने लगते
हैं। लेकिन यह मेलजोल तभी तक
रहता है , जब तक आपका स्टेशन
नहीं आता। ट्रेन से उतरते ही आप
सब भूल जाते हैं। इसी तरह जीवन
पूरा होने पर जीवात्मा किसी और
मार्ग की ओर बढ़ जाती है।
कुछ कर्मों का लेखा-जोखा खत्म
हो जाने पर मुक्त हो जाते हैं ,
बाकी कर्मों का हिसाब-किताब
पूरा करने के लिए फिर से जन्म लेते
हैं। जन्म लेने के बाद पुराने जन्म के
संबंध याद ही नहीं रहते हैं। अगर
देखा जाए तो हम मरने वाले के लिए
नहीं रोते , बल्कि उससे मिलने वाले
अपने सुख के लिए रोते हैं। जब-जब
उस सुख की याद आती है , मरने
वाला शख्स याद आता है। इसलिए
किसी अनजान के मरने पर हमें दुख
नहीं होता।

आनंद को कैसे पाएं?
आनंद कुछ और नहीं, एक
दिव्य मस्ती है, जिसमें साधक हर
पल सराबोर रहता है। यह
मस्ती हमेशा एक जैसी रहती है, कम-
ज्यादा नहीं होती। यह आनंद
हमारी चेतना से उपजने वाली एक
दिव्य सुगंध है, जो हर पल
महकती रहती है, लेकिन माया में
उलझे रहने के कारण इस
मस्ती का अनुभव नहीं हो पाता।
अगर आनंद को पाना है तो आत्म
भाव में आना होगा क्योंकि आनंद
तो आत्मा में ही होता है। आनंद
नदी के बहाव की तरह है जो मन,
बुद्धि और ह्रदय में खुशी का संचार
कर देता है। यह आंतरिक खुशी है,
इसका संबंध भौतिक पदार्थों से
नहीं होता। कहने को तो हम कह देते हैं
कि आज खाना खाकर आनंद आ
गया। असलियत में यह आनंद
नहीं बल्कि क्षणिक सुख होता है
जो इंद्रियों के स्तर पर महसूस
किया जाता है।
ब्रह्मानंद, चिदानंद, दिव्यानंद,
सच्चिदानंद शब्दों से हम आनंद शब्द
का मतलब समझ सकते है। जैसे
सच्चिदानंद में तीन शब्द हैं। सत,
चिद और आनंद। सत, जो हमेशा एक
जैसा रहे, किसी भी काल का उस पर
असर न हो, जो सर्वव्यापी हो, जन्म
और मृत्यु से परे हो। ऐसा तो केवल
चिद ही है। चिद का अर्थ होता है
आत्मा या चैतन्य, जो पूरे ब्रह्मांड में
व्याप्त है। इसलिए मन को जब
सतरूपी चिद में लगाएंगे तो आनंद
की प्राप्ति होगी।
Apne aap ko accsess karna apka kam hai . Uske liye jaruri hai aatmachintan ,swaiya par visvash .aap kitana bhi kabil ho, logo ka aap se swarth shidh hota hai tabi ve aapki chamchagiri karenge, jaha dekhenge ab aap unke koyi kam nahi aa shakte to ya to matalab nahi rakhenge aur yah lagne par ki aap reciving end par hai , kantti katane lagenge . Ye jag ki reet hai . ¤ bhala banna ,nake hona tik hai . neki par hi aaj samaj ka astitva tika hai warna sab kuch kab ka tahas-nahash ho chuka hota . bhalayi ke jajbe ki aaj ke dour may sabse jyada jarurat hai ,magar swaiy ko kamjor banana uchit nahi . yaad rakhe kamjor ko har koi dabata hai , apne hi log aapko bematalab dowun karne may kag jate hai kyoki , apne ko supirear dikhana मानवीय फितरत है ।
First impression is last impression . व्यवहार मेँ आपका बोलने का तरिका (COMUNICATION)कैसा है , ये बहोत हि अहम चिज है । क्योँकिं , आपका व्यवहार हि आपकी पहचान बनाता है । दिनभर के काम कि परिक्षा एक मिनट मेँ , सालभर कि गयी पढाई कि परिक्षा तिन घंटो मेँ हो जाती है । और वैसे हि उम्र के 25 साल तक किये गये मेहनत का फल जिदंगी भर मिलता रहता है ।" Waqt Aur Samajh Kismat Walon Ko Hi Milta Hai.."
Kyon ki ,Waqt Hota h Tab Samajh Nahi Hota
Aur Samajh Aati Hai Tab Waqt Nahi Hota !
जिदंगी का सवोंतम उपहार है 'समय' इसका सदुपयोग करो क्योँकि एकबार गया हूआ समय दुबारा नही आता । तिन घंटे शिनेमागृह मेँ बिता लेते हो लेकीँन 15 मिनटभी मंदिर मेँ नही रह पाते ।

जिदंगी के सफर मेँ कभी~भी पैसा कमाने या बचाने के चक्कर मेँ गलत काम ना करो , क्योँकि वे पैसे व्यर्थ जायगेँ यातो वसुले जायगेँ। हमेशा अपने अंर्तमन ,विवेक ,आत्मा कि पुकार सुनो । व्यक्ति पैसा कमाने के लिए आरोग्य गवाता है फिर आरोग्य कमाने पैसा गवाता है ।''निरोगी काया" पहिला सुख कहा जाता है , क्योँकि वह अपने अस्तित्व कि पहचान है ।जो प्रयत्न करता है ,ईश्वर उन्हिका साथ देता , प्रयत्नांति परमेश्वर । किसीको सबक सिखाने के लिए बिना सोचे कुछ गलत कदम उठाना अपने लिए ही मुशीबत औरDIPRESSION का कारण बनते है । पैसा रिश्ते-नाते बनाता और बिघाळता है । किसीको हां कहके ऐन वक्त पर धोका देना , उसके और आपके लिए बहोतही नुकशान दायक हो शकता है । " प्रान जाये पर वचन ना जाये "
Apne aap ko accsess karna apka kam hai . Uske liye jaruri hai aatmachintan ,swaiya par visvash .aap kitana bhi kabil ho, logo ka aap se swarth shidh hota hai tabi ve aapki chamchagiri karenge, jaha dekhenge ab aap unke koyi kam nahi aa shakte to ya to matalab nahi rakhenge aur yah lagne par ki aap reciving end par hai , kantti katane lagenge . Ye jag ki reet hai . ¤ bhala banna ,nake hona tik hai . neki par hi aaj samaj ka astitva tika hai warna sab kuch kab ka tahas-nahash ho chuka hota . bhalayi ke jajbe ki aaj ke dour may sabse jyada jarurat hai ,magar swaiy ko kamjor banana uchit nahi . yaad rakhe kamjor ko har koi dabata hai , apne hi log aapko bematalab dowun karne may kag jate hai kyoki , apne ko supirear dikhana मानवीय फितरत है ।
LIFE मेँ कभी-भी गलत तरीके से धन ना कमाओ और नाही वैसे सोचो , क्योकीँ जीतना भी गलत तरिके से धन ईकठ्ठा किए हो , उसका हिसाब-किताब आपको देना है । और ओ आपको फलेगा भी नही , सब व्यर्थ मेँ जाएगा । सच्ची स्रधा भगवान पर रखे , तो ईसांन सब कुछ पा शकता है । हम पूजा अपना अहकाँर दुर करने करते है ।जो हमे अच्छा नही लगता उसे दुसरे के साथ ना करो ।हमारे आत्मा के अंदर बैठा परमात्मा कि आवाज सुने , अगर ओ मना करे तो उस काम को ना करे और हाँ करे तो कितने भी संकट आए उसे जरूर करे ।
यहा पर हरेक व्यक्ती स्वाथौँ है । , हरेक अपने मतलब के लिऐ और अपना काम निकालने तक एक-दुसरे से मिठी-मिठी बाते करता है ।
जीसके पास जबतक पाट्री प्रबल हो , सत्त्ता हो , संपत्ऩी हो लोग तबतक उन्ही के पिछे भागते है । बाकी परिस्थिती मे वही लोग साथ छोड़ते है । कुछ लोग तो खाने पिने के चक्कर मे अपना इमान तक बेच जाते है । और दिखावे मे इधर कि बाते उधर बताते है ।
हम अगर बाहरी दूनिया मे जाकर देखे , तो पायेगेँ कि हरेक व्य़क्ति अपने निहित स्वार्थ हेतू भाग-दौड़ करता है । यहा पर हरेक का ऐक-दुसरे के साथ औपचारिक संबध रहता है ।
जब अपनेही लोग धोका दे दै ।तो बाजी दिल से नही , दिमाक से लढी जाती है ।
" LIFE " हमे कई तरिके से ठोकर मारकर गिराती है । पर ये हम पर निर्भर करता है , हम उठ खड़ा होना चाहते है ,या नही ।
First impression is last
impression . व्यवहार मेँ
आपका बोलने
का तरिका (COMUNICATION)कैसा है ,
ये बहोत हि अहम चिज है । क्योँकिं ,
आपका व्यवहार हि आपकी पहचान
बनाता है । दिनभर के काम
कि परिक्षा एक मिनट मेँ , सालभर
कि गयी पढाई कि परिक्षा तिन
घंटो मेँ हो जाती है । और वैसे
हि उम्र के 25 साल तक किये गये
मेहनत का फल जिदंगी भर
मिलता रहता है ।
अंदर की आवाज का क्या मतलब है?
-लक्ष्मी मल्होत्रा, लुधियाना
आपके अंदर की चेतना बार-बार अच्छे
विचार पैदा करती है। जब भी कोई
बुरा विचार मन में आता है, तब
आपका विवेक आपके भले-बुरे को ध्यान
में
रखकर एक अच्छा विचार पेश
करता है। वह
एक ऐसा विचार होता है,
जो हमेशा आपको ऊपर ही उठाएगा,
उलझनों से निकालेगा, बुराइयों से
बचाएगा। लेकिन हमारा उस्ताद
मन उस
विवेक की बात को नजरअंदाज कर
देता है
क्योंकि मन को अपनी बात
मनवानी होती है। मन यह
अच्छी तरह
जानता है कि अगर विवेक की बात
पूरी हो गई
तो मेरा झंडा ऊंचा नहीं रहेगा। मन
कभी हारना नहीं चाहता।
मन बाहर दूसरों से ही नहीं,
बल्कि विवेक
की बात से भी जीतना चाहता है,
जैसे रात
को आप यह सोचकर सोएं कि कल से मैं
योग
शुरू करूंगा। यह मेरी सेहत के लिए
अच्छा होगा। यह आपके विवेक
की आवाज है,
जो आपको सेहत की ओर ले जाने
की सलाह दे
रही है लेकिन जब सुबह होती है, तब
मन
बहाने बनाना शुरू कर देता है। आज
नहीं,
कल से करेंगे। एक दिन नहीं करेंगे
तो क्या होगा आदि। लेकिन अगर
उस समय
मन के बहाने पर ध्यान न देकर विवेक
की बात मानी जाए, तब मन
भी उसी बात
को मान लेता है लेकिन शुरू में
थोड़ा हठ
करना पड़ता है।
जब मन विवेक के साथ काम करने लगे,
तब
मन हमें ऊंचाइयों की ओर ले जाता है।
यह
विवेक ही हमें अच्छे-बुरे की पहचान
कराता है। मन को अच्छा-
बुरा नहीं पता होता, इसलिए मन
की न
सुनकर हमेशा अंदर की आवाज
को अहमियत
दें, जिसमें सिर्फ भलाई
छुपी होती है।
यदि आप सुरक्षित गोस्वामी से कोई
सवाल पूछना चाहते हैं तो इस ईमेल
अड्रेस
पर लिखें-
sundaysatsang@indiatimes.com

आयु एवं धन के संबंध में काफी लोग
चिंतित रहते हैं। लोग जानना चाहते
हैं कि उनकी आयु कितनी होगी और
उनके पास धन कितना होगा? इन
प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए वे कई
प्रयास भी करते हैं। ज्योतिष
शास्त्र जैसी विद्याओं
का सहारा लेते हैं ताकि इन
जिज्ञासाओं की शांति हो सके। उम्र
और धन के संबंध में आचार्य चाणक्य
कहते हैं कि... आयु: कर्म च वित्तं च
विद्या निधनमेव च।
पञ्चैतानि हि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव
देहिन:।। उम्र, कर्म, धन,
विद्या और मृत्यु ये पांच बातें
उसी समय निर्धारित हो जाती हैं
जब शिशु गर्भ में होता है। आचार्य
चाणक्य कहते हैं कि जब शिशु गर्भ में
होता है उसी समय उसका प्रारब्ध
निर्धारित हो जाता है। पूर्व जन्म
में किए कर्मों के आधार पर
ही आत्मा को नया शरीर प्राप्त
होता है। शिशु के जन्म से पहले
ही परमात्मा निर्धारित कर
देता है कि वह कितने वर्ष जिएगा?
इंसान की मृत्यु कैसे होगी? उसके
कर्म क्या - क्या होंगे? शिशु के पास
धन कितना रहेगा और कैसे कमाएगा?
शिशु की शिक्षा कैसी रहेगी?
शास्त्रों के अनुसार ये बातें पूर्व
निर्धारित होती हैं लेकिन फिर
भी व्यक्ति को अपने
कर्मों को प्रधान मानना चाहिए।
भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने
भी कर्मों को ही प्रधान माना है।
मनुष्य का प्रथम कर्तव्य ही कर्म
करना है। अत:
व्यक्ति को हमेशा अपने कर्मों पर
ही ध्यान देना चाहिए।
सच्ची स्रधा भगवान पर रखे ,
तो ईसांन सब कुछ पा शकता है । हम
पूजा अपना अहकाँर दुर करने करते है
।जो हमे अच्छा नही लगता उसे दुसरे
के साथ ना करो ।हमारे आत्मा के
अंदर बैठा परमात्मा कि आवाज सुने ,
अगर ओ मना करे तो उस काम
को ना करे और हाँ करे तो कितने
भी संकट आए उसे जरूर करे ।
- पहली बात जब भी भगवान
या अपने इष्ट का ध्यान करें या मंत्र
जप करें, वह नाम और जप उजागर न
करें। क्योंकि धार्मिक महत्व
की दृष्टि से भगवान के नाम
का ध्यान जितना गुप्त
रखा जाता है, वह
उतना ही असरदार और
फलदायी होता है। - दूसरी बात आप
जिस भी देवता या इष्ट का नाम लें,
उस नाम का मतलब और देव स्वरूप
का ध्यान कर जप करें। इससे मन शांत
और एकाग्र रहता है। - तीसरी और
अंतिम बात, जो व्यावहारिक रूप से
मुश्किल लगती है, किंतु धार्मिक
नजरिए से अहम है, वह है भगवान
की पूजा, ध्यान या उनका नाम जप
किसी इच्छा, कामना के मकसद से न
कर, बिना स्वार्थ
या हितपूर्ति की कामना से
श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
धार्मिक दृष्टि से ऐसी निस्वार्थ
भक्ति से भक्त को भगवान
की प्रसन्नता और अदृश्य
कृपा मिलती है। साथ ही वह शांत
और सहज हो जाता है।

हर सफलता कुछ
त्याग और निष्ठा मांगती है। लक्ष्य
जितना बड़ा हो, उसका मूल्य
भी उतना अधिक होता है। अगर हम
मूल्य
नहीं चुका पाते हैं
तो वो सफलता भी हमारे लिए
नहीं होती, भले ही फिर हम शिखर
पर
ही क्यों ना हों। उसका श्रेय नहीं ले
सकते,
हां उसका अपयश जरूर
भुगतना पड़ता है।
सच्ची स्रधा भगवान पर रखे ,
तो ईसांन सब कुछ पा शकता है । हम
पूजा अपना अहकाँर दुर करने करते है
।जो हमे अच्छा नही लगता उसे दुसरे
के साथ ना करो ।हमारे आत्मा के
अंदर बैठा परमात्मा कि आवाज सुने ,
अगर ओ मना करे तो उस काम
को ना करे और हाँ करे तो कितने
भी संकट आए उसे जरूर करे ।
हमें
प्रतिदिन
यह
प्रार्थना करनी चाहिए कि हे
ईश्वर हमें
लगन और संकल्प-शक्ति प्रदान
करिए,
क्योंकि बड़े से बड़ा वृक्ष भी एक लघु
बीज से
पैदा हुआ है और ऐसा इसलिए हुआ
क्योंकि वह बीज धरती के अंतस में
निरंतर
प्रगतिशील रहा। इंसान
की जिंदगी श्रेष्ठ है,
क्योंकि समस्याओं व
मुसीबतों के दौर से गुजरती है।
हमें इन सब समस्याओं से विचलित
होने
की आवश्यकता नहीं है। ये समस्याएं
संकल्प
के समक्ष अधिक समय तक नहीं रह
पाएंगी।
समस्याओं से निपटने के लिए सदैव
सतर्क
रहना चाहिए। समस्याएं तो सहज
ही शांत हो जाएंगी।
जो व्यक्ति अवसर
का महत्व नहीं जानते, वे सफलता से
दूर
रहते हैं। इच्छा और
लगातार
क्रिया करने
की रुचि होनी चाहिए।
भरत
को रामकथा का सबसे निर्दोष,
निश्चल
और निष्ठावान पात्र माना गया।
ये भरत की सफलता का सूत्र था।
शिक्षा यह है कि हमें भले ही कोई
भी शक्ति या सामथ्र्य मिल जाए,
हमें
कभी अपनी योग्यता और
अधिकारों की सीमा को नहीं लांघना चाहिए।
जैसे ही हम अपनी सीमाएं लांघने
लगते हैं,
हमारे पतन का सिलसिला भी शुरू
हो जाता है।
कई
बार
हम
लक्ष्य
के
करीब
होते
हुए
भी चूक
जाते
हैं।
जीतने
की घड़ी में
थोड़ी सी हड़बड़ाहट
जीत
को हार
में
बदल
देती है।
जब
मंजिल
के
नजदीक
हों तो सबसे
ज्यादा जरूरी होती है
एकाग्रता।
एकाग्रता का सीधा संबंध
होता है
मन
से। मन जितना ज्यादा शांत रहेगा,
प्रयास उतने अच्छे रहेंगे। परिणाम
भी मनोनुकुल मिलेंगे।

सन्त और पापी में केवल यह
अन्तर है कि हर सन्त का एक
भूतकाल होता है और हर
पापी का एक भविष्य।
जीवन में सबसे ज्यादा आनंद
उसी काम को करने में है जिसके
बारे में लोग कहते हैं कि तुम
नहीं कर सकते हो।
वही सबसे तेज चलता है,
जो अकेला चलता है।
आदमी हारने के लिए
नहीं बना है। वह मिट सकता है,
लेकिन हार नहीं मान सकता । -
उपन्यासकार, अर्नेस्ट
हेमिंग्वे
सामने हो मंजिल तो रास्ता न
मोड़ना ,जो मन में हो वो ख्वाब
न तोड़ना हर कदम पे
मिलेगी कामयाबी तुम्हें, बस
सितारे चुनने के लिए
कभी जमीन न छोड़ना
कोशिश करो कि कोई तुमसे
ना रुठे ज़िंदगी में
अपनों का साथ ना छूटे
रिश्ता कोई भी हो उसे
ऐसा निभाओ कि ज़िंदगी भर उस
रिश्ते की डोर न टूटे
बेजुबां परिंदों के देखिए
तो हौसले ऊंचे -ऊंचे
दरख्तों पर बना रहे घोसले
उम्र कभी मोहताज
नहीं होती बुलंदी की देखिए
आज भी गा रहीं आशा भोंसले
बरसों पुरानी डायन पर संसद
में चर्चा हो गई ख़ुश हो जाओ
कि कागज़ पर महंगाई कम हो गई
क़समें तो वो कुछ इस तरह से
खाते हैं चाय ,दूध,पीते
या जैसे फ्रूट चबाते हैं। हम
बुलाते हैं उन्हें यूं रोज
मगर , हर रोज यही कहते कि बस कल
आते हैं।
यह मत देखो कोई श़ख्स
गुनहगार कितना है। यह
देखो वह आपके साथ वफ़ादार
कितना है। यह मत सोचो उसमें
क्या -क्या कमजोरियां हैं, यह
देखो कि वह श़ख्स दिलदार
कितना है।
हर बात ऐसी करो इतिहास बन
जाए। हर क़दम के गवाह चांद -
तारे बन जाएं। क़िस्मत के
भरोसे जिंदगी न डगमगाना ,
कर्म ऐसे करो कि क़िस्मत ख़ुद
बन जाए।
कड़ी से कड़ी जोड़ते जाओ,
तो जंजीर बन जाती है। मेहनत
पर मेहनत करते चले जाओ ,
तो तक़दीर बन जाती है। मनीष
प्रगट , सीहोर (मप्र)
पढ़ो लिखो और ढूंढ़ो जॉब
जीवन में रोमांस नहीं घर-घर
में नल लग गए पनघट पर भी चांस
नहीं - प्रकाश खोवाल, सीकर
कश्ती हदे तूफां से निकल
सकती है बात बिगड़ी हुई फिर
बन सकती है हौसले रख अपने
इरादे न बदल तक़दीर
किसी रोजा भी बदल सकती है -
नरेंद्र तायवाड़े,
राजनांदगांव (छग)
सपने हर चीज को आसान बना देते
हैं , आशाएं कोशिश को हकीकत
बना देती हैं,प्यार
जिंदगी को खूबसूरत
बना देता है और मुस्कुराहट
से यह सारे काम किए जा सकते
हैं .

अपनी प्रार्थना में असर लाने के
लिए
भगवान से मांगने का भाव छोड़ दें।
हम
जितना मांगेंगे, उतना कम मिलेगा।
सही तरीका यह है कि जीवन उसके
भरोसे
छोड़ दें और अपना कर्म करते चलें।
फिर
मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
जो आवश्यकता होगी, वो अपनेआप
मिल
जाएगा।
हमारी प्रार्थना में भाव समर्पण
का होना चाहिए, इसके बाद
तो भगवान
बिना मांगे ही सब दे देगा।
प्रार्थना तो बहुत करते हैं लेकिन
भगवान
सुनता ही नहीं। दरअसल हम जब
भी प्रार्थना करते हैं तो उसमें
वो भाव
नहीं होता जो भगवान को चाहिए।
हम
मिन्नतों में भी भगवान को वस्तुओं
का लालच देते हैं। सिर्फ ये सोचने
की बात
है कि जिसने इस पूरे संसार
की रचना की है
वो क्या किसी साधारण लालच से
पिघल
जाएगा। प्रार्थना में सिर्फ
आपकी भावनाएं ऐसी हों जो उसे छू
सके।
अनुभव हमारे ज्ञान
को बढ़ा देता है लेकिन
हमारी बेवकूफियों को कम
नहीं करता।
जितनी मेहनत से लोग नरक में
जाते हैं , उससे आधी से स्वर्ग
में जा सकते हैं।
हम प्रार्थना करते है
कि परम् पिता परमात्मा आपको
गणेश की सिद्धी
लक्ष्मी की वृद्धि ,
चाणक्य की बुद्धि,
विक्रमादित्य का न्याय,
पन्ना सी धाय
कामधेनू सी गाय,
भीष्म की प्रतिज्ञा,
हरिश्चन्द्र की सत्यता,
मीरा की भक्ति,
शिव की भक्ति,
कुबेर की सम्पन्नता,
विदेह की विरक्ति,
तानसेन का राग,
दधीचि का त्याग,
भृर्तहरी का बैराग,
एकलव्य की लगन,
सूर के भजन,
कृष्ण की मित्रता,
गंगा की पवित्रता,
मां का ममत्व,
पारे का घनत्व,
कर्ण का दान,
विदुर की नीति,
रघुकुल की नीति प्रदान करे।


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