Pair of Vintage Old School Fru

* किस्मत भागने से नहीं, लडऩे
से बदलती है

दौड़ में हम ये भूल जाते हैं
कि मुसीबतें भागने से खत्म
नहीं होतीं, बिना उनसे जूझे
ये सुलझ भी नहीं सकतीं। एक
आदमी हमेशा मुसीबतों से
घिरा रहता था। उसका एक कदम
ठीक होता तो दूसरा बिगड़
जाता। उसे सुधारने
जाता तो तीसरा बिगड़ जाता।
तीसरा सुधारने जाता तो कोई
नई मुसीबत खड़ी हो जाती।
कभी परिवार पर कोई संकट,
तो कभी नौकरी पर। उनसे पार
पाता तो कोई नई उलझन सामने आ
जाती। वह बहुत परेशान हो गया।
उसने सोचा कि ये मेरे साथ
ही क्यों होता है। ऐसा कब तक
चलता रहेगा? क्या जीवन में
कभी सुख संतोष होगा? वह
इतना निराश हो गया कि उसने
आत्महत्या तक करने का प्रयास
कर लिया पर किस्मत ने
उसका वहां भी साथ नहीं दिया।
वह बच गया और परिवार और इष्ट
मित्रों ने उसे बहुत ताने
सुनाए और उसे जिन्दगी से
भागने वाला कहा सभी ने उसे
धिक्कारा। उसने
सोचा कि स्थान बदलने पर शायद
मेरा भाग्य बदल जाएगा। उसने
एक छोटे से कस्बे को पसंद
किया। वहां जाने के लिए उसने
और उसके परिवार ने तैयारी कर
ली। सामान लेकर उसने जैसे
ही घर से बाहर कदम
रखा तो देखा एक महिला सामने
रास्ता रोके खड़ी है। उसने
पूछा कौन हो तुम और
क्या चाहती हो। महिला ने
कहा तुम्हारा साथ। आदमी ने
जवाब दिया लेकिन मैं तो शहर
छोड़ रहा हूं। महिला ने
मुस्कुरा कर कहा तो मैं
भी वहां तुम्हारे साथ
जाऊंगी। आदमी ने झल्लाकर
उसका परिचय पूछा तो वह बोली-
मैं तुम्हारी किस्मत हूं। यह
सुनकर उसका दिल बैठ गया।
उसने कहा जब तुम ही मेरा साथ
छोडऩे को तैयार नही हो तो मैं
कहीं भी जाकर क्या करुंगा?
उस आदमी ने फैसला किया कि मैं
यहीं रहकर अपना भाग्य
बदलूंगा। निश्चय
ही उसकी मेहनत रंग लाई,
जी तोड़ मेहनत से सफलता उसके
कदम चुमने लगी। अब वह भी खुश
था और परिवार भी उल्लास के
माहौल से कष्ट
भी आता तो उसका तुरंत समाधान
हो जाता।

* खुद को पहचाने
फकीर से सलाह ली। फकीर ने उसे
एक तरीका बताया । उसने
बेटों से कहा मैं तीर्थ
यात्रा पर जा रहा हूं और
बेटों को उसने कुछ बीज दिए और
कहा कि इन बीजों को सम्हाल कर
रखना। उसके बाद उनके
पिता तीर्थ पर चले गए उसके
बाद लम्बे समय के बाद लौटे।
वे एक-एक कर तीनों के घर गए।
पहले बेटेे के घर पहुंचे।
पहले बेटे से उन्होंने
पूछा बेटा मैंने जो तुम्हे
बीज दिए थे उसका तुमने
क्या किया? उसने
कहा पिताजी कौन से बीज मुझे
तो याद ही नही। पिता ने उसे
कुछ भी नहीं कहा। उसके बाद
पिता ने अपने दूसरे बेटे के
घर जाकर भी यही प्रश्र किया।
उसने
अपनी तिजोरी की चाबी पिता को दे
दी और कहा मैंने आपकी अमानत
को तिजोरी में सम्हाल कर
रखा है। पिता को फिर
निराशा हुई। अब वे तीसरे
बेटे के पास गए और वही प्रश्र
दोहराया। उसने कहा पिताजी आप
को मेरे साथ कहीं चलना होगा।
दोनों थोड़ी दूर चले और
सामने एक बगीचा था। पुत्र ने
कहा पिताजी ये रहे आपके बीज।
पिता का दिल खुशी से झुम
उठा और उसने खुश होकर
अपनी सारी जायदाद अपने तीसरे
बेटे के नाम कर दी।
परमात्मा ने हर किसी को हुनर
दिया है, सभी को समान शरीर
दिया है और संभावनाएं भी। पर
फर्क सिर्फ इस बात से
पड़ता है कि आप किसी मौके में
या अपने आप में
कितनी संभावनाऐ देखते है और
आप मौक ा हो या शरीर
कितनी बेहतर तरीके से
उसका उपयोग करते हैं।
पिता ने अपने
तीनों बेटों को समान बीज दिए
थे पर तीनों ने उसका अपने ढंग
से उपयोग किया। वैसे
ही परमात्मा ने हम
सभी को जीवन और अपने स्तर
की संभावनाएं दी हैं। बस सब
कु छ इसी पर टिका है कि हम
उसका उपयोग कैसे करते ह

* स्वर्ग और नर्क क्या है?
Hevan 310 f
एक
बार
किसी गुरु
से
उसके
शिष्य
ने
पूछा मैं
जानना चाहता हुं
कि स्वर्ग

नरक
कैसे
हैं ?
उसे
गुरु
ने
कहा आंखे
बंद
करों और
देखों।
शिष्य
ने
आंखे
बंद
की और
शांत
शुन्यता में
चला गया।
गुरु
ने कहा अब स्वर्ग देखों और
थोड़ी देर बाद कहा अब नर्क
देखों। उसके थोड़ी देर बाद
गुरु ने पूछा- क्या देखा? वह
बोला स्वर्ग में मैंने
ऐसा कुछ नहीं देखा जिसकी लोग
चर्चा करते हैं न ही अमृत
की नदियां, न स्वर्ण भवन और न
ही अप्सराएं। वहां तो कुछ
भी नहीं था और नर्क में
भी कुछ भी नहीं था न
अग्रि की ज्वालाएं, न
पीडि़तों का रूदन कुछ
भी नहीं।शिष्य ने पूछा-
इसका क्या कारण है? मैंने
स्वर्ग देखा या नहीं देखा?
गुरु हंसे और बोले- निश्चय
ही तुमने स्वर्ग और नर्क
देखे हैं लेकिन अमृत
की नदियां, अप्सराएं, स्वर्ण
भवन, पीड़ा व रूदन तुझे स्वयं
वहां ले जाने होंगे। वे
वहां नहीं मिलते जो हम अपने
साथ ले जाते हैं
वही वहां उपलब्ध
हो जाता हैं। हम ही स्वर्ग
हैं, हम ही नर्क ।
व्यक्ति जो अपने अंदर
रखता है, वही अपने बाहर
पाता है। भीतर स्वर्ग है
तो बाहर स्वर्ग है और भीतर
नर्क हो तो बाहर नर्क है।
स्वयं में ही सब कुछ छुपा है।

* अगर लालू होते
प्रधानमंत्री तो क्या होता लालू प्रसाद यादव
को तो सभी जानते हैं।
वो वही करते हैं जो उन्हें
अच्छा लगता है। अब अगर
उन्हें देश
का प्रधानमंत्री बना दिया जाए
तो भारत का तो नक्शा ही बदल
जाएगा। और नक्शा बदले या न
बदले कुछ तो बदलाव होंगे ही।
इन बदलावों पर
जरा अपनी नजरें इनायत करें :-
राष्ट्र परिधान:-
धोती कुर्ता
राष्ट्र पेय:- ताजा भैंस
का दूध
राष्ट्र पशु:- भैंस
राष्ट्र खेल:- गुल्ली डण्डा
राष्ट्र भाषा:- इंग्लिशवा
राष्ट्र खिलौना:- ए.के 47
राष्ट्र परिवार नियोजन
योजना :- हम दो हमारे दर्जन
राष्ट्र
डॉक्यूमेंट्री फिल्म:- लालू
बन गया जेंटलमैन
राष्ट्र गाड़ी:- भैंस
की सवारी
राष्ट्र स्लोगन:- जब तक
रहेगा समोसे में आलू, तब तक
रहेगा हमारा पीएम लालू


" LIFE " हमे कई तरिके से ठोकर मारकर गिराती है । पर ये हम पर निर्भर करता है , हम उठ खड़ा होना चाहते है ,या नही ।
* स्वप्नदोष से परेशान हैं?
Sks ujn 305 31011 f
ब्रह्मचर्यासन
एक
ऐसा आसन
है
जो खाने
के
बाद
और
सोने
से
पहले
किया जाए
तो स्वप्नदोष
होना जैसी समस्या पर
विराम
लग
जाता है।
इस
आसन
से
ब्रह्मचर्य
का पालन
करने
में
काफी मदद
मिलती है।
इसलिए
इसे
ब्रह्मचर्यासन
कहा जाता है।
साधारणतया योगासन
भोजन
के बाद नहीं किये जाते परंतु
कुछ ऐसे आसन हैं जो भोजन के
बाद भी किये जाते हैं।
उन्हीं आसनों में से एक है
ब्रह्मचर्यासन। यह आसन
रात्रि-भोजन के बाद सोने से
पहले करने से विशेष लाभ
होता है।
ब्रह्मचर्यासन के नियमित
अभ्यास से ब्रह्मचर्य-पालन
में खूब सहायता मिलती है
अर्थात् इसके अभ्यास से अखंड
ब्रह्मचर्य
की सिद्धि होती है। इसलिए
योगियों ने इसका नाम
ब्रह्मचर्यासन रखा है।
ब्रह्मचर्यासन की विधि
समतल स्थान पर कंबल बिछाकर
घुटनों के बल बैठ जायें।
तत्पश्चात्
दोनों पैरों को अपनी-
अपनी दिशा में इस तरह
फैला दें कि नितम्ब और
गुदा का भाग जमीन से लगा रहे।
हाथों को घुटनों पर रख के
शांत चित्त से बैठे रहें।
ब्रह्मचर्यासन के लाभ
इस आसन के अभ्यास से
वीर्यवाहिनी नाड़ी का प्रवाह
शीघ्र
ही ऊध्र्वगामी हो जाता है और
सिवनी नाड़ी की उष्णता कम
हो जाती है, जिससे यह आसन
स्वप्नदोषादि बीमारियों को दूर
करने में परम लाभकारी सिद्ध
हुआ है।
जिन व्यक्तियों को बार-बार
स्वप्नदोष होता है, उन्हें
सोने से पहले पांच से दस मिनट
तक इस आसन का अभ्यास अवश्य
करना चाहिए। इससे उपस्थ
इन्द्रिय में
काफी शक्ति आती है और
एकाग्रता में
वृद्धि होती है।