Old school Swatch Watches
http://vinayakvaastutimes.wordpress.com/2013/07/03/जानिए-भवन-निर्माण-के-कुछ-स/
मानव शरीर और ब्रम्हाण्ड पंचतत्वों से
बना हुआ है, भवन भी पांच
तत्वों का ही सम्मिश्रित स्वरूप है। ब्रम्हाण्ड,
मानव शरीर, एंव भवन इन तीनों में स्थित पांच
तत्वों का सामंजस्य स्थापित करके खुशहाल
जीवन व्यतीत किया जा सकता है।
सूर्यः पूर्व दिशा के स्वामी एंव अग्नि तत्व के
कारक है। ये पिता के भी कारक माने जाते हैं।
कुदरती कुण्डली में सिंह राशि पंचम भाव
का प्रतिनिधित्व करती है, इस कारण हाजमे
पर विशेष प्रभाव पड़ता है। भवन में पूर्व
की दिशा का ऊंचा होना या वहां पर
दो छत्ती का निर्माण होने से महिलाओं
को हड्डी रोग
तथा सरकारी कर्मचारियों को आये दिन
दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्वास्थ्य
और सम्मानित जीवन जीने के लिये भवन पर
इसका शुभ प्रभाव पड़ना जरूरी है।
चन्द्रः यह जल तत्व का कारक तथा भवन में
इनका ईशान कोण (पूर्व-उत्तर), पर विशेष
प्रभाव रहता है। सन्तुलित विचार धारा व
शुभता बनायें रखनें में इनकी महत्वपूर्ण
भूमिका रहती है। यह माता का भी प्रतिनिधित्व
करते है। इनका कार्य मुख्य रूप से जल संग्रह
का है। इनके सन्तुलित होने से जातक
को भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति आसानी से
होती है तथा मन की चंचलता खत्म होती है।
भवन के ईशान कोण में इनकों स्थापित
करना शुभ माना जाता है।
मंगलः यह अग्नि तत्व के कारक है तथा भवन
में दक्षिण दिशा पर इनका विशेष प्रभाव रसोई
घर के रूप में होता है, इस कारण रसोई घर के
नजदीक, पूजाघर, शौचालय, बाथरूम
तथा स्टोर रूम इन तीनों का एक साथ
होना किसी बड़े खतरे की सूचना देता है। यह
स्थान दूषित होने पर घर के मुखिया को हार्ट
अटैक होने की आशंका रहती है। फोर्स व
मीडिया से जुड़े लोगो को आये दिन समस्याओं
से जूझना पड़ता है। आग्नेय कोण (पूर्व-
दक्षिण) में रसोई घर स्थापित करने से मंगल
का अमंगलकारी प्रभाव नही पड़ता है।
बुधः यह ग्रह पृथ्वी तत्व का द्योतक है,
तथा उत्तर दिशा जो सकारात्मक
उर्जा का प्रवाह करती है, इस पर इनका विशेष
प्रभाव रहता है। युवा तथा गणितज्ञ होने के
कारण इनका छात्रों की शिक्षा एंव बैठक रूम
में अधिकार क्षेत्र है, इसलिये इन्हे
भी शौचालय, रसोई घर, कबाड़ घर आदि से दूर
रखना चाहिये अन्यथा बच्चों की शिक्षा में
बाधा एंव परिवार में कलह बनी रहती है।
गुरु: ये आकाश तत्व के कारक है तथा ईशान
कोण का प्रतिनिधित्व करते है। भवन की जिस
दिशा में पूजन गृह बनेगा वह स्थान
इनका अधिकार क्षेत्र हो जायेगा। अतः पूजन
गृह ईशान कोण में ही स्थापित करें। यह स्थान
दूषित होने से- बुर्जुगों से मतभेद, ससुराल
पक्ष से तनाव, आर्थिक तंगी, तथा परिवार के
सदस्यों के बीच मतभेद बना रहेगा।
शुक्रः ये चुम्बकत्व आकर्षण का प्रतीक है,
तथा आग्नेय कोण (पूर्व-दक्षिण) के
स्वामी है। शुक्र ग्रह आसुरों के देवता है,
इनका सौन्दर्य तथा भोग विलास की वस्तुओं
पर निवास स्थल है। इस स्थान के दूषित होने
से शैया सुख में कमी, विदेश यात्रा में बाधायें,
महिलाओं के स्वास्थ्य पर धन अधिक व्यय
एंव सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आयेगी।
शनिः ये वायु तत्व के कारक है, तथा पश्चिम
दिशा पर इनका विशेष प्रभाव रहता है। ये
न्याय एंव अनुशासन प्रिय है जिस परिवार में
अन्याय, अनुशासन, गंदगी, मदिरा का सेवन,
झूठ आदि होगा वहां के सदस्यों को आये दिन
कष्ट बना रहेगा। घर की जिस दिशा में बेसमेन्ट,
कूड़ा, अंधेरा, कबाड़ आदि होगा उस स्थान पर
इनका स्थाई निवास स्थान माना गया है।
पश्चिम दिशा के दूषित होने से- स्थान
परिवर्तन, यात्रा में दुर्घटना, दाम्पत्य सुख में
कमी, नौकरों का भाग जाना, घर में
चोरी जैसी समस्यायें बनी रहेगी।
राहु एंव केतुः ये दोनो ग्रह नैऋत्य कोण
(दक्षिण-पश्चिम) दिशा के कारक होते है।
सीढि़यों पर तथा लम्बी गलियों में इनका विशेष
प्रभाव रहता है। ये एनर्जी कारक ग्रह है,
कुदरती कुण्डली में अष्टम भाव में वृश्चिक
राशि पर विशेष प्रभाव रहता है। इस स्थान के
दूषित होने से- दुर्घटना, आत्महत्या, पाइल्स
रोग, खून की कमी तथा महिलाओं को गर्भपात
की समस्या रहती है।
भवन का निर्माण करते समय इन
सभी ग्रहों को सही दिशा में स्थापित करके
सकारात्मक उर्जा को प्राप्त
किया जा सकता है।

जरूर पालन करें इन वास्तुनियमों का
किचन हो दक्षिण पूर्व में
किचन के लिए आदर्श दिशा है दक्षिण पूर्व।
उत्तर या उत्तर-पूर्व में किचन बनाने से बचें।
किचन समृ्द्धि का सूटक होता है। इसलिए गलत
दिशा में किचन का होना वित्तीय और
स्वास्थ्य परेशानियों का कारण बन सकता है।

दक्षिण की ओर सिर कर सोएं
घर में स्थिरता लाने का मुख्य द्वार होता है
मास्टर बेडरूम। वास्तु नियमों के मुताबिक,
आपका बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में
होना चाहिए। ध्यान रखें, सोते समय
आपका सिर दक्षिणया पश्चिम की ओर
होना चाहिए।

बाथरूम की दिशा
वास्तुशास्त्र के मुताबिक, टॉयलेट और
बाथरूम मकान के दक्षिण पश्चिम दिशा में
होना चाहिए। अगर टॉयलेट उत्तर-पूर्व में
हो तो घर में आने वाली हवा दूषित
होगी जो अपने कमरों को दूषित करेगी।

बेडरूम में न रखें भगवान की तस्वीर,
मूर्ति या मंदिर
किसी अलमारी में या बेडरूम में मंदिर न बनाएं।
ऐसा करना तनाव का कारण बन सकता है।
पूजा-अराधना के लिए अलग कमरा बनाएं।

पूजा घर के पूर्व या पश्चिम दिशा में
देवताओं की मूर्तियां होनी चाहिए।
* पूजा घर में रखी मूर्तियों का मुख उत्तर
या दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए।
* देवताओं की दृष्टि एक-दूसरे पर
नहीं पड़नी चाहिए।
* पूजा घर के खिड़की व दरवाजे पश्चिम
दिशा में न होकर उत्तर या पूर्व दिशा में होने
चाहिए।
* पूजा घर के दरवाजे के सामने
देवता की मूर्ति रखनी चाहिए।
* पूजा घर में
बनाया गया दरवाजा लकड़ी का नहीं होना चाहिए।
* घर के पूजा घर में गुंबज, कलश
इत्यादि नहीं बनाने चाहिए।
* वास्तु के अनुसार जिस जगह भगवान
का वास रहता है, उस दिशा में शौचालय, स्टोर
इत्यादि नहीं बनाए जाने चाहिए।
* पूजा घर के ऊपर या नीचे भी शौचालय
नहीं बनाना चाहिए।
* वास्तुशास्त्र के अनुसार बेडरूम में पूजा घर
नहीं बनाना चाहिए।
* पूजा घर के लिए प्राय: हल्के पीले रंग
को शुभ माना जाता है, अतः दीवारों पर
हल्का पीला रंग किया जा सकता है।
* फर्श हल्के पीले या सफेद रंग के पत्थर
का होना चाहिए। इन कुछ छोटी-
छोटी बातों को ध्यान में रखकर पूजा घर
बनाया जाना चाहिए। जो हमें सुख-समृद्धि के
साथ-साथ हमारे जीवन को खुशहाल और हमें
हर तरह से संपन्न बनाते है।

इन रंगों से रहें दूर
घर में लाल और बैंगनी जैसे ज्यादा गहरे
रंगों का इस्तेमाल न करें, इनसे नकारात्मक
ऊर्जा फैलती है। बेडरूम में लाल और काले रंग के
इस्तेमाल से बचें।

बेडरूम में न रखें वॉटर फाउंटेन
बेडरूम में वॉटर फाउंटेन या इसकी तस्वीर न
रखें। ऐसी तस्वीरों से नकारात्मक
ऊर्जा आती है।

भारी-भरकम मूर्तियां
मकान के उत्तर पूर्व हिस्से में भारी-भरकम
मूर्तियां न रखें। इनसे वित्तीय
परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

खिड़कियों पर क्रिस्टल लटकाएं
खिड़कियों पर क्रिस्टल लटकाने से
सकारात्मक ऊर्जा संचार होता है। जब सूर्य
की रोशनी इनपर पड़ती है तो इंद्रधनुष -
सी आकृति पैदा होती जो जो घर
की समृद्धि लेकर आती है।

लॉकर के सामने आइना लगाएं
लॉकर के सामने ऐसा आइना लगाएं जिसमें
लॉकर का प्रतिबिंब नजर आए। सांकेतिक रूप
से यह धन को दुगना करता है।

ड्रॉइंग रूम की दिशा
आपका ड्राइंग रूम सदैव उत्तर दिशा की ओर
होना चाहिए। साथ ही, फर्नीचर दक्षिणी और
पश्चिमी दीवार के साथ लगाकर रखें।
इसका यह अर्थ हुआ कि आप उत्तर और पूर्व
की दिशा की ओर मुंह कर बैठेगे, जो स्वस्थ
दिमाग के लिए काफी कारगर है।